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महात्मा हसंराज
महात्मा हसंराज महर्षि दयानंद के अमर ग्रन्थ “सत्यार्थ प्रकाश” की शिक्षा से प्रभावित होकर डी.ए.वी. कॉलेज लाहौर के प्रथम प्राचार्य व भारत के स्वदेशी शिक्षा के प्रथम सूत्रधार बने ।
शिक्षा संस्कार की जननी होती है और किसी भी देश का उत्थान और पतन देश के नागरिकों के संस्कारों पर ही निर्भर करता है । विदेशीपन को अपनाने में पतन और स्वदेशी अपनाने में ही राष्ट्र का उत्थान सम्भव है ।
यह महात्मा हसंराज की शिक्षा का प्रभाव था कि डी.ए.वी. कॉलेज में पढने वाले अनेक छात्र आर्य समाज की राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रभावित होकर देश की आज़ादी के लिए हँसते-हँसते फाँसी के फंदे पर झूल गए ।