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Extinct chapters of world history / विश्व इतिहास के विलुप्त अध्याय

Rs. 180.00

आज विश्वभर में जो इतिहास हमारे समक्ष है वही हमें पढाया, प्रस्तुत या अनुमान किया जा रहा है, उसमें अनेक भ्रान्त धारणाएँ हैं, जिनमें से कुछ तो ऐसी हैं जिनके कारण बीती हुई घटनाओं को बिल्कुल उल्टे रूप में प्रस्तुत किया जा रहा हैं। इसके बहुत से दृष्टान्त पाश्चात्य विद्वानों द्वारा प्रचारित यह प्रचलित जन-विश्वास है कि आर्य एक जाति है , और आर्यों ने ही भारत पर आक्रमण किया था और इस देश को ही अपना घर, निवासस्थान बना लिया था । जबकि यह इतिहास सम्बंधित भ्रांती और विपरीत धारणाएँ है । जबकि आर्य कोई जाति नहीं, अपितु हिन्दू जीवन-पद्धति हैं ।

एक अन्य बड़ा भ्रमजाल मुस्लिम वर्ग के सम्बन्ध में है । और अत्यन्त सावधानीपूर्वक प्रचारित भ्रमजाल शेरशाह, फिरोजशाह और अकबर जैसे भारत में विदेशी शासकों की प्रकल्पित महानता के बारे में भी है । वर्तमान ऐतिहासिक धारणाओं में एक अन्य गम्भीर दोष मध्यकालीन ऐतिहासिक भवनों के मूल उद्गम के सम्बन्ध में है । कम-से-कम भारत में सभी मध्यकालीन मकबरे, मस्जिदों, किले, स्तम्भ, पुल, नहरें, भवन और सड़कें मुस्लिम-पूर्व हिन्दू-मूल की हैं, और फिर भी उनमें से प्रत्येक के निर्माण का श्रेय विदेशी सुल्तान को दिया गया है ।

इन भवनों की मुस्लिम मूल उद्गम के बारे में भ्रान्ति का कारण यह है कि हिन्दू मन्दिरों और भवनों पर मकबरे और मस्जिदों के रूप में मुस्लिमों का आधिपत्य रहा और वे इनका दुरूपयोग करते रहे हैं। यह बात ‘ताजमहल मन्दिर भवन है’, ‘फ़तेहपुर सीकरी एक हिन्दू नगर है’, और आगरे का लालकिला हिन्दू भवन है’, तथा ‘दिल्ली का लालकिला हिन्दू लालकोट है’, जैसी पुस्तकों में लेखक द्वारा प्रमाणित की जा चुकी है ।

उक्त सब कारणों से भारतीय और विश्व-इतिहास-ग्रंथों में अनेक झूठ बातें प्रविष्ट हो गई हैं, जिन्होंने ऐतिहासिक सत्य की जड़ें खोखली कर दी हैं और इतिहास को सत्य सी बहुत दूर ला पटका है । इस ग्रन्थ ‘विश्व इतिहास के विलुप्त अध्याय’ द्वारा लेखक ने प्रचलित ऐतिहासिक धारणाओं के बहुत सारे दूरगामी दोषों को जनता के सम्मुख प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। लेखक ने निवेदन किया है कि आप सब भी ‘विश्व इतिहास के विलुप्त अध्याय’ से इन दोषों को भलीभाँति समझ लें पश्चात सभी तथ्यों का प्रचार-प्रसार करें । क्योंकि इतना  दोष भरा इतिहास बिना किसी रोक-टोक के सदियों से चल रहा है, और डेढ़ सदी से विधिवत पढाया जा रहा है । इसका कारण यह है कि सामान्य जन इतिहास के प्रति लापरवाह है और अधिकारी व्यक्ति स्वार्थ और भय से ग्रस्त है । हम इस झूठे इतिहास को कितने दिन सहते रहेंगे, इसका विचार देशहित में योगदान देने वाले प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए ।  

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